मनुष्य के जन्म लेते ही उसकी पहचान के साथ कुछ ऐसा
घटित होता हैं जिसका चुनाव उसने नहीं किया होता है - ' धर्म '
- क्या है धर्म
धर्म के नाम सुनते ही मन में विभिन्न धर्मों के
धार्मिक अनुष्ठानों तथा मान्यताओं का स्मरण होने लगता है ! अलग अलग श्रोतों से धर्म के बारे में अलग अलग जानकारी मिलेगी पर यहाँ पर
धर्म को साधारण रूप से समझने के लिए इसकी तुलना सीधे
सीधे सामाजिक नियमों से की गयी है ! इस बात का सार समझने की कोशिश
की जाए तो धर्म को नियमों की पुस्तक माना जा सकता
है !
- धर्म कब से हैं , कैसे
बनते हैं एवं कौन बनाता है
चूंकि धर्म अनेक हैं , तो इसका जवाब
भी एक नहीं हो सकता ! मानव जीवन के शुरुआत से ही मनुष्य एक सामाजिक
प्राणी रहा है जिसमे भिन्न भिन्न प्रकार के लोग एक साथ मिल जुल कर रहते हुए आये
हैं जो तभी संभव हो सकता है जब उनके द्वारा कुछ सामाजिक नियमों का पालन किया जाता
रहे ! इतिहास से हम जानते हैं कि ऐसे कई महापुरुष हुए
हैं जिन्होंने समाज को नई दिशा दी ! उनके द्वारा
उस कालखंड के अनुकूल आवश्यक मार्गदर्शन दिए फिर वो चाहे बुद्ध हो या जीसस , पैगंबर हो या कोई संत महात्मा सभी ने अपने अनुयायियों को सही जीवन जीने के
लिए कुछ नियमों का पालन करने को कहा ! लेकिन समय
के साथ प्रकृति भी बदलती है और नियमों की आवश्यकता भी ! इसलिए फिर एक नया महापुरुष आता है जो नए नियम बनाता है और फिर से एक नई
दिशा दिखाता है ! ऐसी स्थिति में पुराने धर्म का
पालन कर रहे लोगों का ही एक वर्ग नए की आवश्यकता से सहमत होकर उस नए धर्म से जुड़
जाता है ! दुनिया में प्रचलित सभी धर्म हिंदू , बौद्ध , जैन , क्रिस्चियन , इस्लाम , ताओइस्म , शिंटो , कन्फ्यूशीवाद , यहूदी सभी की उत्पत्ति इसी तरह से हुई है !
- कितना जरूरी है धर्म तथा अनुष्ठानों का पालन
अगर हिंदू धर्म की दृष्टी से देखा जाए तो किसी काल
खंड में मनुष्य ने मानव जीवन में नदियों , सूर्य , पवन आदि जैसे प्राकृतिक संसाधनों की महत्वता को जाना होगा तथा इनके
संरक्षण का दायित्व को भी समझा होगा ! अब पूरे
समाज को इस कार्य के लिए प्रेरित करने के लिए ही शायद इनकी पूजा करने जैसा कार्य
शुरू हुआ होगा , जिसे आज भी कई जगह धार्मिक
अनुष्ठानों के रूप में देखा जाता है और हमने देखा भी है कि न सिर्फ हिंदू धर्म
बल्कि कई और धर्मों में भी सूर्य देव, पवन देव, या गंगा मैया की ही तर्ज़ पर अलग अलग इष्टदेव या इष्टदेवियों का वर्णन है ! अब अगर यह सवाल आये कि पूजा करने से प्राकृतिक संसाधनों को कैसे संरक्षण प्राप्त होगा तो इसकी तुलना आज के दौर में मनाये जाने वाले
मदर्स डे या फ्रेंडशिप डे से की जा सकती है जिन्हें नए युग के अनुष्ठानों के रूप
में जान सकते हैं ! जब विभिन्न कार्यक्रम आयोजित
किये जाते हैं , बुद्धिजीवियों के व्याख्यान होते
हैं , गीत गाये जाते हैं ! अब माताओं का केवल मदर्स डे के दिन गुणगान कर देने से या वाटर डे मन लेने
से कैसे किसी का भला हो सकता है , लेकिन फिर भी आज
के दौर में ये सब स्वीकार्य है कि कम से कम समाज में संदेश दे कर लोगो को किसी सही
कार्य के लिए प्रेरित तो किया ही जाता है न ! इसी
तरह किसी काल खंड में हमारे प्राकृतिक संसाधनों को पूजने की परंपरा शुरू होने की संभावना भी शायद इसी वजह से ही हो सकती है !
- विभिन्न धर्म एवं तुलना
प्रत्येक धर्म में पालन किये जाने वाले हर अनुष्ठान
या मान्यता जिन्हें हम नियमों के रूप में जान रहे हैं के आरंभ होने के पीछे अवश्य
ही कोई न कोई जायज कारण रहा होगा है जिन्हें पीड़ी दर पीड़ी पालन किया जाता रहा है ! ऐसी कई मान्यताएं आज भी प्रचलित हैं जो लगभग सभी धर्मों में पायीं जाती
हैं जैसे -
o
किसी मनुष्य को हानि नहीं पहुँचाना !
o
गुरु / बड़ों का आदर कारण तथा आज्ञा का
पालन करना !
o
आय का एक हिस्सा धार्मिक कार्यों में
लगाना !
o
कार्य की सफलता के लिए कार्य के प्रारंभ
होने से पहले इष्टदेव / इष्टदेवी को पूजना !
o
गरीबों एवं दुखियों की मदद करना !
इसके आलावा ऐसे भी कई उदहारण हैं जिसमे अलग अलग
धर्मों में या एक ही धर्म लेकिन भिन्न भिन्न परिस्थितियों में नियमों में भी
भिन्नता देखी जाती है जैसे -
o
घर या धार्मिक स्थानों में जूते या चप्पल
पहन के प्रवेश करना या न करना !
o
जीव की पूजा करना या बलि देना !
o
एक ही जीवनसाथी के साथ जीवनभर निष्ठावान
रहना या बहु-विवाह करना !
o
मूर्ति पूजा करना या नहीं करना !
o
उपवास करना या नहीं करना !
अलग अलग धर्मों की अलग अलग नियम पुस्तिका होने के
वाबजूद भी कई समानताएं हैं ! इसे हम धर्मों में वर्णित नियमों के अध्यन से
समझ सके हैं !
हिंदू - वेद / पुराण
इस्लाम - कुरान
क्रिस्चियन - बाइबिल
सिख - गुरु ग्रंथ साहिब
यहूदी - टोराह
निश्चित ही रूप से यहाँ ध्यान देने वाली बात ये है कि
नियमों में भिन्नता केवल भिन्न परिस्थितियों की वजह से है ! इसलिए कौन से नियम या कौन से धर्म बेहतर हैं , इसकी चर्चा करना निरर्थक ही है ! हम ये जाने कि समय के
साथ ऐसे कई नियमों का मूल उद्देश्य भुला दिया गया और केवल उसका पालन किया जाना ही
महत्वपूर्ण हो गया ! इनमे वो नियम भी शामिल हैं जिनकी वर्तमान में शायद
आवश्यकता ही न हो !
- क्या हो अगर आप कोई धर्म न माने
ऐसा संभव ही नहीं , अगर आप धर्म
को वही मानते हों जो यहाँ ऊपर दिया गया है ! क्योंकि
हम सभी किसी न किसी समाज में रहते ही हैं इसलिए हम हमारे आस पास रह रहे लोगों के
साथ समन्वय के लिए कोई न कोई नियम तो पालन करते ही हैं ! हाँ , अगर धर्म को सिर्फ हिंदुत्व, इस्लाम आदि तक सीमित रखा जाए, तो कोइ जरूरी
नहीं कि आप किसी का पालन करें ! ऐसा अक्सर देखा भी
गया है कि कुछ लोग इनमे से किसी धर्म को नहीं अपनाते ! जापान एक ऐसा देश है जहां सबसे ज्यादा लगभग 45% लोग ऐसे हैं जो किसी तथाकहित धर्म को नहीं मानते !
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