ध्रुवीकरण - क्या सिर्फ राजनीति ?

एक ऐसा शब्द जो अक्सर राजनैतिक माहौल में सुना जाता रहा है | राजनैतिक व्यक्तियों द्वारा अपने प्रतिद्वंदियों के विरुद्ध अक्सर ध्रुवीकरण की राजनीती करने का आरोप लगाया जाता रहता है .............आखिर क्या है ध्रुवीकरण ?





इस शब्द का मतलब इसके अर्थ से ही प्रतीत होता है , जिसका मतलब होता है आकर्षण पैदा करना ..ठीक वैसे ही जैसे पृथ्वी के ध्रुवों में होता है | व्यक्ति अपने प्रयोजनों को सिद्ध करने के लिए जिसमे उसे अनेक संख्या में लोगों की सहमति की जरूरत होती है , ऐसी परिस्थितियों में उसके द्वारा ऐसे हालात बनाए जाते हैं या ऐसा प्रचार किया जाता है कि लोग अधिक से अधिक संख्या में उससे सहमत हों सके | ऐसे उदहारण चुनावी मौसम में बहुतायत में देखे जाते है जब लोगों को उनका धर्म या जाति याद दिलाकर उनके वोट प्राप्त करने की कोशिश की जाती है |




तो क्या ध्रुवीकरण केवल धर्म या जाति के नाम पर ही होता है ? 
क्या सिर्फ राजनैतिक व्यक्ति ही ध्रुवीकरण की कोशिश करते हैं ?

नहीं , यह सिर्फ एक भ्रांति है | ध्रुवीकरण सिर्फ धर्म या जाति नहीं बल्कि किसी भी मुद्दे पर हो सकता है तथा किसी के भी द्वारा किया जा सकता है | ऐसा हम सब के साथ होता है और शायद हम सभी के द्वारा भी , इसे हम कुछ इस तरह से समझ सकते हैं -


बाजार में गारमेंट्स के क्षेत्र में बहुत सी कंपनियाँ होती हैं , और एक आम व्यक्ति को किसी कंपनी का कपड़ा लेने के लिए सिर्फ उसकी गुणवत्ता और कीमत को ही देखना चाहिए | लेकिन विभिन्न कंपनियों द्वारा ग्राहकों को लुभाने के लिए कुछ इस प्रकार से उनका ध्रुवीकरण करने का प्रयास किया जाता है -
  • सबसे पहले फैन फालोविंग का उनके चहेते सेलेब्रिटी के आधार पर , यानि अगर दो कंपनियां है जिसमें एक का प्रचार शाहरुख़ खान करता है एवं दुसरे का प्रचार सलमान खान , तो लोग ऊपर के तर्क को दरकिनार कर केवल अपने चहेते स्टार के आधार पर ही कपड़े की कंपनी का चयन करेंगे |
  • इसमें भी अगर कोई कंपनी अगर सिर्फ किसी एक विशेष सेगमेंट (जैसे सिर्फ शर्ट विशेष) में ही कपड़ा बनाने या उसमे खुद को निपुण साबित करने का प्रयास करती है तो यह भी एक तरह का ध्रुवीकरण ही है |
  • इसके बाद अगर ध्रुवीकरण को एक और स्तर पे ले जाया जाए तो कंपनी किसी उम्र या लिंग वर्ग विशेष के कपड़े बनाने में भी अपनी पारंगिता साबित करने की कोशिश कर सकती हैं |



तो हम समझ सकते हैं कि टेलीविज़न में आने वाले प्रचारों में इस्तेमाल होने वाले शब्द जैसे - सिर्फ मर्दों के लिए , बच्चों के लिए , शिशुओं के लिए , भारतीय खाने वालों के लिए , महिलाओं के लिए , बुजुर्गों के लिए , खेलने वालों के लिए , पढने वालों के लिए , मेहनत करने वालों के लिए और न जाने क्या क्या वगेहरा वगेहरा .............. आखिर क्या मतलब होता है इन सब का |

न सिर्फ कंपनियां बल्कि हम भी किसी शादी विवाह में जाते हैं तो दूल्हा या दुल्हन वाले बन जाते हैं | हम सभी अपने पक्ष की तारीफ़ तथा दुसरे पक्ष में खामी गिनाने लगते हैं | समाज को भी हमने हाई क्लास / मिडिल क्लास / लोअर क्लास में बांट रखा है | शाकाहारी और मांसाहारी भी अपनी अपनी विशेषताएं बताने से नहीं चूकते | नौकरीपेशा और व्यापार करने वाले भी अलग होते हैं और इससे भी मन न भरे तो उसमे भी सरकारी नौकरी और प्राइवेट नौकरी या अलग अलग काम का व्यापार करने के आधार पर हम बंट जाते हैं |






अगर इन सभी बातों पर गौर किया जाए तो यह निष्कर्ष निकालना कि ध्रुवीकरण हमेशा उचित या अनुचित ही होता है , अत्यंत मुश्किल है | लेकिन यह बात प्रथम द्रिष्टि में ही समझ आती है हम जैसी सामाजिक व्यवस्था के अंग है , उसमे ऐसा होता आया है और हो भी रहा है | यानि यहाँ पर यह बात बहुत ही महत्वपूर्ण हो जाती है कि हम किस बात को अत्यंत महत्त्व देते हैं | क्या यह वही है जो हम चाहते हैं , या हम सिर्फ एक मुहरा मात्र है जिसे किसी दुसरे के द्वारा प्रभावित कर दिया जाता है और शायद हम हमारे नहीं किसी और की मर्जी से काम कर सर्फ एक मशीन की भांति संचालित हो रहे हों |




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